Importance of Prana Pratishtha
When idols are brought to temples, they are simply made of stone. However, through the process of *Prana Pratishtha* (infusion of life), these idols are made divine, so that they are no longer just statues but become the abode of the divine. Without Prana Pratishtha, no idol is established in a temple. During this process, the divine powers of the deity are invoked, allowing them to enter and reside in the idol. After this, the idol is considered a living embodiment of the deity and is established in the temple as such.
It is often said that after Prana Pratishtha, even a stone can embody the form of God. After the ritual of Prana Pratishtha, it is believed that the deity themselves resides within the idol. However, for the Prana Pratishtha ritual to be successful, it must be performed at the right time and auspicious moment. Performing Prana Pratishtha without a proper muhurta (auspicious time) does not yield good results.
Method of Prana Pratishtha
1. First, the idol is bathed with holy water from the Ganga or other sacred rivers.
2. Then, the idol is dried with a clean cloth and adorned with new clothes.
3. The idol is placed in a clean and sacred place, where it is decorated with sandalwood paste.
4. The process of Prana Pratishtha is performed by chanting specific mantras. During this time, the deity is worshipped with great devotion and rituals.
5. Finally, the ritual concludes with an aarti (ritual of waving lamps) and the distribution of prasad (consecrated food).
Mantra Worship
During Prana Pratishtha, several mantras are chanted to invoke divine presence. Some important mantras are:
– “Maano Jutirjushtamajyasya Brihaspatiryajyamimam, Tanotvarishtam Yajna Gum Samimam Dadhatu Vishwedevaasa Iha Madayanta Mompra Tishta.”
– “Asyai Pranah Pratishthantu Asyai Pranah Ksharantu Cha Asyai, Devatvamarchaayai Mam Heti Cha Kashchana.”
– “Om Shrimann Mahaganadhipataye Namah Supratishthito Bhava, Prasanno Bhava, Varada Bhava.”
After Prana Pratishtha, the deity present in the idol is worshipped with full rituals, religious ceremonies, and chanting of mantras.
प्राण प्रतिष्ठा का महत्व
जब किसी मंदिर में मूर्ति रखी जाती है, तो वह सिर्फ एक पत्थर की मूर्ति होती है। लेकिन प्राण-प्रतिष्ठा के माध्यम से उस मूर्ति में भगवान का वास किया जाता है, जिससे वह केवल मूर्ति नहीं रह जाती, बल्कि भगवान का रूप धारण कर लेती है। प्राण-प्रतिष्ठा के बिना कोई भी मूर्ति मंदिर में स्थापित नहीं की जाती। इस प्रक्रिया में देवी-देवता की दिव्य शक्तियों का आह्वान किया जाता है, ताकि वे मूर्ति में आकर स्थापित हो सकें।
प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति को भगवान के रूप में पूजा जाता है। सही तिथि और शुभ मुहूर्त का चयन इस प्रक्रिया के लिए बहुत जरूरी होता है, क्योंकि बिना सही मुहूर्त के प्राण प्रतिष्ठा करने से शुभ फल नहीं मिलता।
प्राण प्रतिष्ठा की विधि
1. सबसे पहले, मूर्ति को गंगाजल या किसी अन्य पवित्र नदी के जल से स्नान कराया जाता है।
2. इसके बाद मूर्ति को साफ वस्त्र से पोंछ कर नए वस्त्र पहनाए जाते हैं।
3. मूर्ति को साफ और पवित्र स्थान पर स्थापित किया जाता है, और चंदन का लेप लगाकर उसका शृंगार किया जाता है।
4. फिर, विशेष मंत्रों का उच्चारण कर प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। इस दौरान विधिपूर्वक भगवान की पूजा की जाती है।
5. अंत में, आरती की जाती है और प्रसाद वितरण होता है।
मंत्र पूजन
प्राण प्रतिष्ठा के दौरान कई मंत्रों का जाप भी किया जाता है। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण मंत्र इस प्रकार हैं:
– “मानो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं…”
– “अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु…”
– “ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः सुप्रतिष्ठितो भव…”
प्राण प्रतिष्ठा के बाद देवी-देवता की विधि-विधान से पूजा की जाती है और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।